Friday, August 12, 2011

मेरा विद्यालय

हम जिस ओर चले, वही रास्ता बना,

हमारा बढता हर कदम, कही न आ थमां।

दिल किया इतना बडा, की दर्या भी समाया।

शारदा माँ की किरपासे, यह विद्यामंदिर बसाया।

लोग पुछते है हमसे, क्या है आपके खुशी का राज,

हम कहते है शानसे, एकही तो जिंदगी है जनाब।

सबसे बडी जरुरत हमारी, है बस आपका प्यार,

आप ही के वो साथ होती है हमारी हर मुश्किल पार।

सच्चाई से कभी भी, ना हमने मुँह मोडा,

नाही कभी किसी के भरोसे को है तोडा।

सबोंको मेरा ही माना, नही बजाया राजनितीका बाजा।

लोगोने भी हमे है बनाया, अपने दिलों का राजा।

हे शारदे माँ,

अपनी किरपा बरसाते रखना इस विद्या के मंदिर पर

हजारो गोल्डन जुब्लियाँ मनाए, तालियाँ बजाकर।

 

- मनीषा वसिष्ठ बहिर

सह-शिक्षिका

मराठी माध्यमिक विभाग

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