Tuesday, January 19, 2010

मंजिल

ओ मेरे प्यारे दोस्तो जरा सुनलो,
अपने मन में गहराई से सोचलो।
एक दूसरे को दे देना दिल,
क्या यही है तुम्हारी मंजिल?
जिन के लिए कही नहीं होता शिक्षा का आधार,
उनके लिए विद्या मंदिर है ज्ञानद्वार।
खूब पढो, मेहनत करो,
अपनी मंजिल हासील करो,
विद्या मंदिर का नाम रोशन करो।
किया है जिन्होंने अपना बलिदान,
देश के लिए है प्राणदान।
क्या नहीं करोगे उसका सम्मान?
जिनके कारण मिला है हमें इतना सम्मान!
एक दूसरे का करते रहो सम्मान,
क्यों नहीं होगा हमारा भारत महान।

श्री. संदीप रा. घार्गे
(सहा.शिक्षक मराठी माध्य. विभाग)

No comments: